Wednesday, January 6, 2016

बाबासाहेब अम्बेडकर को जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिऐ गये


बाबासाहेब अम्बेडकर को जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिऐ गये। कमीशन का सवाल था कि आपने सारी जिन्दगी पिछङे वर्ग के ऊत्थान के लिऐ लगा दी। आपकी राय मेँ ऊनके लिऐ क्या किया जाना चाहिऐ? बाबासाहब ने जवाब दिया कि अगर पिछङे वर्ग का ऊत्थान करना है तो ईनके अन्दर बङे लोग पैदा करो। काका कालेलकर यह बात समझ नहीँ पाये। ऊन्होने फिर सवाल किया " बङे लोगोँ से आपका क्या तात्पर्य है?" बाबासाहब ने जवाब दिया कि अगर किसी समाज मेँ 10 डॉक्टर, 15 वकील और 20 ईन्जिनियर पैदा हो जाऐ तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीँ सकता।"
ईस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 मेँ आगरा के रामलीला मैदान मेँ बोलते हुऐ कहा "मुझे पढे लिखे लोगोँ ने धोखा दिया। मैँ समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज को नेतृत्व करेगेँ मगर मैँ देख रहा हुँ मेरे आस-पास बाबुओँ की भीङ खङी हो रही हैँ जो अपना पेट पालने में लगी हैँ।"
यही नहीँ बाबासाहब अपने अन्तिम दिनोँ मेँ अकेले रोते हुऐ पाये गये। जब वे सोने कोशिश करते थे तो नीँद नहीँ आती थी।अत्यधिक परेशान रहते थे। परेशान होकर ऊनके स्टेनो नानकचंद रत्तु ने बाबासाहब से सवाल पुछा कि आप ईतना परेशान क्योँ रहते है? ऊनका जवाब था "नानकचंद ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो। ईस अकेली दिल्ली मेँ 10000 कर्मचारी अधिकारी अधिकारी केवल अनुसूचित जाति के है जो कुछ साल पहले शून्य थे। मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया अपने लोगोँ मेँ पढे लिखे लोगोँ मेँ पढे लिखे लोग पैदा हो।क्योँकि मैँ समझता था कि मैँ अकेल पढकर ईतना काम कर सकता हुँ हजारो लोग जब पढ लिख जायेगेँ तो ईस समाज मेँ कितना बङा परिवर्तन आयेगा। मगर नानकचंद मैँ जब पुरे देश की तरफ निगाह डालता हुँ मुझे कोई ऐसा नौजवान नजर नहीँ आता जो मेरे कांरवा को आगे ले जा सके। नानकचंद मेरा शरीर मेरा साथ नहीँ दे रहा हैँ। जब मैँ मेरे मिशन के बारे मेँ सोचता हुँ। मेरा सीना दर्द से फटने लगता है।"
जिस महापुरूष ने अपनी पुरी जिन्दगी, अपना परिवार, बच्चे आन्दोलन की भेँट चढा दिये। जिसने पुरी जिन्दगी यह विश्वास किया कि पढा लिखा वर्ग ही अपने शोसित वंचित भाईयोँ को आजाद करवा सकता हैँ। जिसमेँ अपने लोगोँ को आजाद करवाने का मकसद अपना मकसद बनाया था।
ये तथाकथित पढे लिखे लोग आजकल क्या कर रहे हैँ?
1. ये लोग अपनी टीवी और बीवी मेँ व्यस्त है। ईसके कई ऊदाहण मैँ प्रत्यक्ष देखता हुँ। कई बार मैँ प्रचार करने के लिऐ ऊनके ऑफिस समय पश्चात् ऊनके घर जाता हुँ तो मुझे वे कहते है "यार सॉरी अभी समय नहीँ है। कुछ समय तो बीवी बच्चो को भी देना पङता हैँ।
2. अच्छी टेबल लेने की लिऐ अपने अधिकारियोँ की चापलूसी करने मेँ व्यस्त हैँ।
3. ट्रांसफर के डर से किसी राजनीतिक सामाजिक आन्दोलन के नाम से फटने लगती हैँ।
4. कुछ जिनके राजनीतिक खुजली होती है अपनी जाति का संगठन बनाकर ऊसकी ठेकेदारी मेँ व्यस्त है।
5. कुछ लोग अति आत्मकेन्द्रित है जिनका स्पष्ट मत है कि ऊनके समाज का कुछ नहीँ हो सकता।
6.कुछ लोग वेल्फेयर के काम मेँ व्यस्त है। ईस प्रकार के लोग कुछ सामाजिक ईमानदार है पर साहस और समझ के अभाव मेँ परिवर्तन के आन्दोलन से नहीँ जुङ पाते है।
7. कुछ लोग अपनी पोस्ट के गुरूर मेँ चूर है। ऊनको लगता है ऊनकी दुनिया वहीँ शुरू वहीँ खत्म है।
8. और कुछ लोग जो ब्राह्मण बनियोँ के ज्यादा संपर्क मेँ है वे खुद बाबासाहेब के विरोधी है।
बाबासाहब के जाने के साठ साल बाद हजारो वकील ईँजी., डॉक्टर समाज पैदा हुऐ फिरभी पढे लिखे वर्ग मेँ सुधार होने की बजाय हालात और ज्यादा गँभीर हो गये है।
   अब जन आन्दोलन की आवश्यकता है ।

📚  📘जय भीम 📙📚







1 comment:

  1. Bilkul sahi kaha baba sahab ne aaj kal sab apni duniya me must he yadi koi andolan karta he apne logo ke liye use hi kisi party ka dalla gosit kar dete he aaj chander shekhar azad ravan samaj ke boht muddo par sadak par utarta he bheed to nazar aati he parntu agle din sab conrantin ho jate he aaj bhim army parmukh par 100 se jyada mukdme he wo bhi samaj ke fir bhi bahujan samaj unhe apna neta manne ko teyar nhi jabki bahan mayavati ab kisi se milti nhi na samaj ke liye sadko par aati he to sochne wali baat ye he ki ab bahujan sirf congress bjp aap in sabki vote Bankar rehe jayege

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