Monday, January 18, 2016

पुलिस की मौजूदगी में भी पूरी न हो पाई दलित के घोड़ी पर बैठने की रस्म

पुलिस की मौजूदगी में भी
पूरी न हो पाई दलित के
घोड़ी पर बैठने की रस्म
Updated On: 2016-01-17 09:50:38

जयपुर। संविधान में देश के सभी नागरिकों
को समान अधिकार दिए जाने का
प्रावधान होने के बावजूद दलित इन
अधिकारों से किनारे किए जा रहे हैं।
हजारों सालों से उन्हें समाज में बराबरी का
दर्जा नहीं मिला है। दलित-शोषित समाज
किस हद तक छूआछात का शिकार बनाया
जा रहा है, इसकी ताजा उदाहरण
राजस्थान के पाली जिले में देखने को मिली
है।
मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक यहां के
खिमाड़ा गांव में दलित समाज की एक
युवती नीतू, जो कि सीआईएसएफ में बतौर
कांस्टेबल तैनात है, की शादी 15 जनवरी को
तय की गई थी। जातिवादी व्यवस्था के
चलते तथाकथित ऊंची जाति वालों द्वारा
यहां विवाह के दौरान दलित दूल्हों को
घोड़ी पर बैठने नहीं दिया जाता। हालांकि
नीतू का सपना था कि उसके सपनों का
राजकुमार (दूल्हा) घोड़ी पर बैठकर बैंड
बाजों के साथ गांव में आए।
नीतू को डर था कि जब उसका दूल्हा घोड़ी
पर बैठकर आएगा तो तथाकथित ऊंची जाति
के लोगों द्वारा इसका विरोध किया
जाएगा। इस आशंका को देखते हुए उसने
मुख्यमंत्री कार्यालय में पत्र देकर अपनी
शादी के दौरान सुरक्षा मांगी थी।
नीतू वर्तमान में अद्र्ध सेना बल केंद्रीय
औद्योगिक सुरक्षा बल में कार्यरत है। नीतू
फिलहाल वह बेंगलुरू में कार्यरत है। उसके पिता
अमराराम व माता खेतीबाड़ी करते हैं। उसके
चार भाई हैं, जो गोवा तथा मुंबई में
व्यवसायरत हैं।
उसके भाई लक्ष्मण सरीयाला ने बताया कि
गांव में दलित समाज को शादी के दौरान
बंदोली निकालने या घोड़ी पर बैठकर तोरण
नहीं मारने दिया जाता। जातिवादी
व्यवस्था के चलते कुछ लोग अब भी ऐसा करने
से रोकते हैं।
15 जनवरी को शादी वाले दिन नीतू को
बेसब्री से इंतजार था कि उसका दूल्हा
बैंडबाजे के साथ घोड़ी पर बैठकर आएगा। इस
दौरान सुरक्षा के मद्देनजर मौके पर पुलिस व
प्रशासनिक अधिकारी भी मौजूद थे।
जिला प्रशासन के निर्देश पर एसडीएम,
तहसीलदार व डीएसपी पुलिस फोर्स समेत
विवाह स्थल पर पहुंच गए थे। उन्होंने नीतू और
उसके परिजनों से बात की। 15 जनवरी को
सुबह सात बजे ही नीतू का दूल्हा प्रवीण
भार्गव बारात लेकर खिमाड़ा गांव पहुंच
गया।
प्रशासन ने घोड़ी भी मंगवा ली थी, लेकिन
उदयपुर, भरतपुर, झुंझुनूं, जयपुर और कोटा से आए
तथाकथित ऊंची जाति के लोगों ने दलित
को घोड़ी पर बैठाने का तीखा विरोध शुरू
कर दिया। उन्होंने इसके खिलाफ जमकर
नारेबाजी की। यहां तक कि उन्होंने
प्रशासन के इस रवैये की निंदा की।
मौके पर पुलिस फोर्स, प्रशासनिक
अधिकारियों की मौजूदगी के बावजूद तीखे
विरोध के चलते दलित दूल्हा घोड़ी पर नहीं
बैठ सका। ऐसे में दलित दूल्हे के घोड़ी पर बैठने
की इच्छा पूरी न हो सकी। इसके साथ ही
कांस्टेबल दलित लडक़ी नीतू का अपने दूल्हे
को घोड़ी पर आता देखने का सपना भी
अधूरा रह गया।

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