Saturday, January 30, 2016

"दशानन रावण " गोंडी भाषा में रावण यानि राजा को कहा जाता है ..

......" दशानन रावण "......गोंडी भाषा में रावण यानि राजा को कहा जाता है ..
विभिन्न देशों में पूजनीय दस रावण :-
01 . कई रावण ...... लँका
02 .बसेरावण ..... ईराक
03 . तहिरावण .... ईरान 
04 . कहिरावण ....मिश्र इजिप्त 
05 .दहिरावण ... सऊदी अरब
06 . अहिरावण ... अफ्रीका
07. महिरावण ... क्रोएसिया
08 .इसाहिरावण ... इस्राइल
09 .बहिरावण ... भूमध्य सागर
10 . मेरावण ...... आर्मेनिया 
ये सब गौँड़ राजा थे ।
रावण पुतला दहन का विरोध ब्राह्मणोँ ने कभी नहीँ किया जब्कि  रावणपेन को पूजने वाले में मनुवादियों के अतिरिक्त  सारणा, सैंथाल, द्राविङ व गोंड-धर्म के आदिवासी,व कुछ अनुसूचित जातियों के अलावा कुछ ओबीसी के  लोग भी करते हैँ ।...
Courtesy by Tirumal .Narayan Gajoriya Sir ...
...किसी मित्र ने सवाल खडा किया है कि रावण गोंड आदिवासी  है या ब्राम्हण? कई मित्र रावण को ब्राम्हण साबित करने मेँ लगे हुए  हैँ।
अच्छा होता अगर ये सवाल शंकराचार्य जैसे लोगो से पूछा जाये। अगर रावण ब्राम्हण होता तो हिँदू धर्म के पोषक बामन बनिया और एंटिनाधारी तथा राखी सावंत से ज्यादा मेक-अप करने वाले पाखंडी अपने ब्राह्मण  पुर्वज को हर साल नहीँ जलाते। अगर कोई मित्र रावण को ब्राम्हण मानता है तो पंडितों को रावण की औलाद मानना होगा। अगर रावण ब्राम्हण है तो विभीषण भी ब्राम्हण हुआ ! फिर जब विभीषण रावण से लात खाकर राम के पास आया तो विप्र पुजा को मर्यादा और श्रेष्ठ मानने वाला राम को भी विभीषण को दंडवत प्रणाम करना चाहिए था!  जैसे एक ब्राह्मण  दूसरे ब्राम्हणोँ को करता था । परन्तु यहाँ तो विभीषण राम को दंडवत प्रणाम करता है।  क्या राम इतना  मूर्ख था कि जो पंडित को पैर स्पर्श करवाता और मनुस्मृति का पालन नहीं करता! 
रावण को जानने के लिये गोंडवाना लैँड और गोंड-समाज को जानना जरुरी है। गोंडवाना लैँड पाँच खंड धरती को कहा गया है और यहाँ का राजा शंभु शेख को माना गया है।  जैसे गोंडी साहित्य या पेनपाटा मेँ मिलता है। शंभु शेख के शं से शंयुग=पाँच तथा भु=धरती और शेख=राजा यानि शंभु शेख मतलब पाँच खंड धरती(गोंडवाना लैँड) का राजा। गोंडियन शंभु शेख,शंभु गौरा को मानते हैँ और राजा रावण से बडा शंभु भक्त कोई है ही नहीँ ।। इसलिए रावण गोंड आदिवासी  है। रावण शब्द रावेन का बदला रुप है और अई रावेन,मईरावेन रावण(रावेन) के पुर्वज हैँ जो न सिर्फ रामायण बल्कि गोंडी साहित्य मेँ भी मिलता है और इनके नाम के साथ वेन  जुडा है और गोंडियन कुल श्रेष्ठ या जीवित बुजुर्ग को वेन=देव मानता है।  जैसे सगावेन=सगा देवता इसलिए ये तथ्य रावेन को गोंड-समाज साबित करता है। केकशी रावण की माँ द्रविङ सभ्यता की है।  जरा रामायण खोल के देखेँ और गोंड द्रविडियन हैँ। इसलिए रावण गोंड है। राजा रावेन मंडावी गोत्र का था और महारानी दुर्गावती भी मंडावी हैँ।  दोनो ने अपने अपने  शासन काल मेँ 5 तोले के सोने का सिक्का चलाये थे। महारानी दुर्गावती ने अंग्रेजों व मुस्लिम शासकों से युद्ध लडा और १५वर्ष के शासनकाल के बाद वीरगति को प्राप्त हो गयी थी। कृपया गोंड-समाज का इतिहास पढें । ये समानता है। राजा रावेन ने सोने की लंका बनवायी थी और,रानी दुर्गावती के शासन काल मेँ चलाये गये सोने के सिक्के मेँ पुलस्त लिखा है और पुलस्त वंश का रावण है।  इसलिए रावण गोंड है। मंडावी गोत्र के लोग सांप या नाग को आज भी पुजते हैँ । मंडावी गोत्र वाले ये बात जानते ही हैं कि राजा रावण के पुत्र मेघनाथ को नागशक्ति प्राप्त थी।  इसलिए नागबाण का इस्तेमाल करता था और पुजा करता था। ...मगर मनुवादियों ने नागशक्ति के बाण की बजाय शक्तिबाण प्रचारित कर दिया है।
 भारत में भारत महाद्वीप में अधिकांश  श्याम व काले वर्ण के लोग सारणा, सैंधाल, द्राविङ गोंड-समाज के सदस्य हैं
..." दशानन रावण "......गोंडी भाषा में राजा को कहा गया है।
रावण पुतला दहन का विरोध ब्राह्मणोँ ने कभी नहीँ किया है ।  मगर इसे पूजने वाले द्राविङ, सैंधवी, सारणा  गोंड-धर्म के आदिवासी  लोग रावण-दहन का विरोध  करते हैँ ।...स्मरण रहे मनुवादियों के प्रभुत्व वाले नागपुर कार्यालय में, मनुवादियों ने सन १९३२ में पूना-पैक्ट के अंतर्गत ८०% आरक्षण  रद्द होने की खुशी में पहली बार रावण-दहन कर खुशी मनाई थी। मगर हम आज मनुवादियों से ही आरक्षण व नौकरी की गुहार लगा रहे हैं
आज की पीढी नहीं जानती कि वे दशहरे के नाम पर अपने अधिकार व अपने पूर्वजों के हर साल जुलूस निकाल कर सार्वजनिक रुप से अग्नि-संस्कार कर अपमानित कर रहे हैं और मनुवादियों के त्यौहारों को विभिषण की तरहं  अपना समझने की भारी भूल कर रहे हैं। विडंबना यह भी है कि आदिवासी,से अनुसूचित जाति व ओबीसी बनकर, आरक्षण का लाभ लेने वालों की कमी नहीं है। मगर आरक्षित समाज के अधिकांश लोग अपने  रावणपेन, राजापेन. रावण-महाराजा को अपमानित कर, अपनों का शोषण व अत्याचार करने वालों के रंग में रंगे-सियार बन गये हैं। क्योंकि हमारे समाज के अधिकांश  विभिषण अभी भी जिन्दा घूम रहे हैं। 
बाबा-राजहंस
जय-भीम

10 comments:

  1. मैं आदिवासी हूँ पर आपकी बात से सहमत नही हूँ क्यों की रावण ,रावण का असली नाम था ही नही वो उसकी अपनी कथा है ,और रही बात क्या वो ब्राम्हण था तो हां उसे ब्राम्हण पुत्र ही माना जाता है ।

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    1. अरे भाई साहब हम रावण को मानते है किंतु रावण छल कपटी था ,, पागल लोग, मै भी आदिवासी हू। पर इसका मतलब यह नही की रावन का अर्थ राजा एवम महान होता है। हा रावन एक तपोवसी ब्राम्हण राजा था। जो कि तप और योगशक्ती के द्वारा उन्होने हासील किया था। रावन को बुरा इसलिए मानते है क्यूकी छल कपट द्वारा माता सिता को छल से अपहरण किया। जो उसे अपने शक्ती पर अहंकार चढा हुआ था। इसलिए यहा रावन दहन होता है।

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  2. Sahi baat hai. Ravan dahan nahi hona chahiye.

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  3. हाहाहाहाहाहा, मानना पढ़ेगा ब्राहम्णों के दिमाग को। एैसी खिचड़ी पकाई है के आज सच सामने आने के बाद भी अधिकांश मुलनिवासी भ्रम मे पढ़ जाते हैं।
    राम,रावण, महाबली, लक्षमण, कृष्ण,ब्रहमी यह सभी नाम भारतीय मुलनिवासीयों के पूर्वजो के थे। पहले कोई धर्म नही था। मानव विकास चरण के इतिहासिक किस्से थे,जिनमे विज्ञानशास्त्र, खगोलशास्त्र, गणितशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, समाजशास्त्र, रसायनशास्त्र की जानकारीयां भी थी, जो पिढ़ी दर पिढ़ी सुनाए जाते थे। जैसे जैसे मानव विकास होता रहा लोग कामो के हिसाब से बटते चले गए। पुराने किस्सो को सुनाने सुनाए जाने को भी काम माना गया और उसके लिए लोगो को नियुक्त किया गया। लम्बे समय बाद फारसी लोग भारत आए और किस्से सुनाने वाले लोगो को अपनी भाषा मे जैनी कहा। लम्बे समय बाद जैनी लोगो से जैन समुदाय बना।
    लम्बे समय बाद विदेशी आर्य ब्राहम्णों ने भारत आकर मुलनिवासीयों के किस्सो से जुड़े नामो से मिला कर मनघंणत कहानियां बना कर अपने देवताओ की पहचान भारत मे फैला दी। किस्सो मे मिली जानकारीयों के आधार पर वेदो की रचना की परन्तु पुरी जानकारी न होने के कारण वेदो मे किसी भी शास्त्र का पुरा ब्यौरा नही लिखा जा सका। समाजशास्त्र के आधार पर लोगों को शारिरीक बनावट एंव बुद्धी स्तर के अनुसार काम दिए गए थे। चुंकी वह सिस्टम लागु था सो उसमे लागु वर्ण व्यवस्था को काम से हटा कर जातिगत कर दिया गया, और मनुस्मृति लिख दी गई।
    रामायण, महाभारत, काल्पनीक कहानियां है। भगवतगीता मे मुलनिवासीयों के किस्सो का ज्ञान है थोड़ी फेर बदल करते लिखा गया है, और उसे महाभारत से जोड़ दिया गया ताकि महाभारत मुलनिवासीयों की आने वाली पिढ़ीयो को सत्य लगे।
    वेदो मे कोई भी ज्ञान पुरा नही है वर्ना भारत मे विमान और पारे से सोना बनाना बहौत पहले शुरू हो चुका होता। ये दोनो ज्ञान रावण को थे।।
    जब जैन समुदाय बना तो ज्ञानी शब्द वहां से आया जो जैनी का बदला हुआ स्वरूप है। भगवान शब्द महात्मा बुद्ध के बाद बना। क्युकी वो भगवा रंग पहनते थे सो भगवा धारी को भगवान कहा गया था। जैसे धन वाला धनवान, वैसे भगवा वाला भगवान।
    धर्म शब्द भी बाद मे बना, मान्यताओं को मानने वाला यानि धारण करने वाला।
    वहीं से ब्राहम्णों ने धर्म शब्द फैलाया।

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    1. कहा पढा तुने, ब्राहाणो ने धर्म शब्द फैलाया। रामचरित्र्य मानस,वाल्मिकी मे रामायण मे कहा जिक्र है। पुरे वेदो मे कही भी जिक्र नही ,पहले वर्णप्रथा थी। रामायण, महाभारत, काल्पनीक कहानियां है। तो फिर रामशेतू क्या तेरे दादा ने बनाया। श्री.कृष्ण कि नगरी का उल्लेख वेदो मे है। पुराने मंदिर,अवशेस,हत्यारे ये क्या काल्पनिक है।

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    2. 👌👌👌👌👌👌

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    3. हिंदुओं को बरगलाने का काम किया जा रहा है इस संदेश के माध्यम से ताकि जितने हिंदू है वो सभी अलग अलग गूटों में विभाजित हो जाए ,,, ताकि भारत पर फिर कोई आक्रमण करके अपने राज सत्ता जमाए,,, जब तक मोदी है तब तक हिंदू बचे हुए है ,, मोदी गया तो सब खत्म हो जाएगा,,, बस दूसरे धर्मो का रचा रचाया खेल है ,,, ये सब ईसाई, मुस्लिम लोग का काम है ,, जो भोले भाले आदवासियों को अलग अलग करने के लिए ये मुकाम चालू किए है ,हम भी है आदिवासी लेकिन हम समझते है ,,, नासमझ वाले तो मान ले रहे है की रावण हमारे पूर्वज था ,,अरे सुधर जाओ मेरे प्यारे भोले भाले मित्रों ताकि बाद में हमे परेशानियों का सामना न करना पड़े,,,,,, जय जय श्री राम 🤞🤞🙏🙏🚩🚩🚩🚩🚩

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  4. पागल लोग, मै भी आदिवासी हू। पर इसका मतलब यह नही की रावन का अर्थ राजा एवम महान होता है। हा रावन एक तपोवसी ब्राम्हण राजा था। जो कि तप और योगशक्ती के द्वारा उन्होने हासील किया था। रावन को बुरा इसलिए मानते है क्यूकी छल कपट द्वारा माता सिता को छल से अपहरण किया। जो उसे अपने शक्ती पर अहंकार चढा हुआ था। इसलिए यहा रावन दहन होता है।

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