Wednesday, January 6, 2016

भारत के मूल निवासी चूंकि जंगल की रक्षा करते थे इसलिए उन्हें रक्षक यानी राक्षस कहा गया


….लेकिन भारत के मूल निवासी चूंकि जंगल की रक्षा करते थे इसलिए उन्हें रक्षक यानी राक्षस कहा गया
-आर्यों का मूल स्थान सेन्ट्रल एशिया में मुख्यत: सूमेरियन यूरेशियन थे। 
-आर्य मुख्यत पशु पालन का काम करते थे 
-आर्य जब भारतीय उप महाद्वीप में आये तो यहाँ घने जंगल थे 
-आर्यों को गायों के लिए घास के मैदानों व स्थानीय आदिवासियों की ज़रूरत थी । जंगलों को नष्ट कर, मैदान तैयार करने के लिए आर्यों नें जंगलों को आग(दावानल) लगाना प्रारम्भ किया। 
-आर्यों द्वारा की गयी दावानल को आर्यगण यज्ञ का नाम देते थे ।लेकिन भारतीय मूल निवासी जंगल पर आधारित जीवन जीते थे। इसलिए मूलनिवासी जंगल में लगी हुई आग को बुझा देते थे। इसीलिये आर्य कहते थे कि ये जंगलो के रक्षस हमारे यज्ञ में बाधा डालते हैं। भारत के मूल निवासी चूंकि जंगल की रक्षा करते थे इसलिए उन्हें रक्षक यानी राक्षस कहा गया।


आर्यों के धर्मग्रंथों में राक्षसों का वर्णन ध्यान से पढ़िए 
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-उसमें लिखा गया है कि राक्षस काले रंग के होते थे 
-राक्षसों के घुंघराले बाल होते थे 
-राक्षसों के सींग होते थे 
राक्षसों का यह वर्णन यहाँ के मूल आदिवासियों का वर्णन है 
भारत के मूल निवासी सांवले/श्याम रंग के थे । 
घुंघराले काले बालों वाले थे जो आज भी हैं और आज भी छत्तीसगढ़,मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उडीसा, झारखंड, नागालैण्ड, दक्षिण भारत आदि राज्यों के आदिवासी सींग लगा कर नाचते हैं । 
जबकि आर्य के व्यक्ति या पक्ष के राजेश दावानल को यज्ञ के नाम पर अग्नि की रक्षा के लिए राजा का पुत्र या, सेनापति बन्दरसेना सहित जंगल में जाता था- 
राजा का बेटा ताड़का राक्षसनी का वध करता है । 
-ताड़का यानी ताड़ी पीने वाले आदिवासी समुदाय की महिला 
-ताड़कासुर यानी ताड का पेड़ से निकली ताड़ी पीने वाले आदिवासीगण (असुर)
आर्यगण व आर्यों के हितेषी राजा का बेटा भारत के आदिवासियों की हत्या करता है। 
उसे आर्य ग्रन्थ वीरता की गाथा के रूप में श्लोक व कथा दर्ज करते हैं। 
और उस राजा के बेटे को अपना राष्ट्रीय आदर्श घोषित करते हैं और विष्णु का अवतार घोषित कर दिया। जबकि जो आदिवासी राजा आर्यों का हितेषी बना, उसे शिव का अवतार बना दिया ।और विपक्षी आदिवासी राजाओँ को शिवभक्त बताया । आर्यों के पक्ष के लोगों को बन्दर सेना, गण, ब्राह्मण की औलाद, विष्णु भक्त कहकर महिमामंडन किया, जब्कि विपक्षी आदिवासीगणों को असुर सेना, राक्षसी सेना,अभद्र बताया और मूलनिवासियों को अपमानित करने वाली कथाएं लिखी आज भी हर साल महिषासुर, रावण, मेघनाद, ताड़कासुर वध का उत्सव मनाते हैं । हालांकि मनुवादियों ने दुराचारणी-गणिका (दुर्गा) द्वारा मूलनिवासी के देवता शिव व कालीमाता को अपमानित करने की कोशिश की गयी है और वैश्या दुर्गा द्वारा युद्ध. में महाबली आदिवासी महाराजा महिषासुर का वध बताया है। जब्कि उत्तरी भारत को छोडकर पूर्वी दक्षिण भारत के राज्यों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, आन्ध्रप्रदेश, बंगाल में हकीकत एकदम विपरीत है।
आपको यह पुरानी कहानी इसलिए सुना रहा हूँ ताकि आप यह समझ सकें कि हमारे शासन, प्रशासन व सुरक्षा बलों द्वारा आज भी आदिवासियों की जो हत्याएं नक्सलवाद, बोरो-उग्रवाद,नागा-उग्रवाद के नाम पर की जा रही हैं और आदिवासियों की जर जोरु-जमीन, मन्दिरों पर कब्जे के लिये बच्चों, युवतियों व महिलाओं से बलात्कार, अपहरण,शोषण व हत्याएं की जा रही हैं।मनुवादियों की राष्ट्रीय-सूअर-संघ व इनकी विभिन्न संघ व सेनाएं आतंकवादी घटनाओं की तैयारी व अंजाम दे रही हैं और सरकार इन्हें भारतरत्न से सम्मानित कर रही है।
वास्तविक घटनाओं के प्रचार-प्रसार के अभाव में व मनुवादियों का शासन, ,प्रशासन व सोशल-मीडिया पर एकाधिकार होने के कारण, हम वास्तविकता से मुंह छिपाकर ,मनुवादियों के समाचार व कथाओं को स्वीकार कर रहे हैं ?असल में आदिवासियों को मार कर ,उनकी ज़मीनों पर कब्जा कर लेना ही मनुवादियों का सनातन-धर्म व सनातन-परम्परा है और अधिकांश मूलनिवासीगण आदिवासी, ओबीसी व अनुसूचित जाति के लोग मूकदर्शक बनकर ,मनुवादियों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से आज भी अंगरक्षक व समर्थक बनें हुए हैं।
इसी मनुवादियों की सनातन-परम्परा को मूलनिवासी जनमानस सनातनी, सनातन-काल, सनातन-कर्म, सनातन-धर्म व सनातन-हिन्दू को अपना धर्म समझ कर, अपने ही प्रिर्यजनों की हत्या, शोषण, बलात्कार करवाने में सहभागीदार बनें हुए हैं ।
उदहारण के लिए दो महीने पहले ही छत्तीसगढ़ के पेद्दा गेलूर गाँव में सुरक्षा बलों नें चालीस आदिवासी औरतों पर यौन हमला किया है और अनेक बच्चों, युवक युवतियों की हत्या की है।तीन महिलाओं नें सोनी सोरी के साथ पुलिस थाने में जाकर काफी प्रयास के बाद बलात्कार की रिपोर्ट लिखवाई है ।इनमें एक चौदह साल की बच्ची भी है लेकिन इस घटना के बाद आज तक किसी को गिरफ्तार नहीं क है लेकिन इस घटना के बाद आज तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गय और ना ही कोई कार्यवाही हुई ।लेकिन इन सभी घटनाओं का भारत के सभ्य, शिष्ट, और तथाकथितों की महान संस्कृति के वाहकों के मन में ज़रा सा भी रोष नहीं है, विडम्बना है कि आदिवासी महिला सोनी सोरी के गुप्तांगों में पत्थर भरने पुलिस अधिकारी को भारत के राष्ट्रपति नें वीरता पुरस्कार से नवाज दिया है।
उडीसा की आरती मांझी के साथ सुरक्षा बलों नें सामूहिक बलात्कार किया और उसे पांच फर्जी मामलों में फंसा कर जेल में डाल दिया , आरती मांझी पाँचों मामलों में निर्दोष पायी गयी 
लेकिन आज तक उसके साथ बलात्कार करने वाले किसी अधिकारी व सिपाही के खिलाफ कोई कानूनी, प्रशासनिक कार्यवाही नहीं करी गयी, पन्द्रह साल की आदिवासी लडकी हिडमे के साथ थाने में बलात्कार कर के उसे सात साल तक जेल में रखा गया और फिर इसी साल उसे निर्दोष घोषित कर के घर भेज दिया, आदिवासी महिला लेधा के साथ पुलिस वालों नें एक महीने तक सामूहिक बलात्कार किया ।
ऐसा करने वाले पुलिस अधिकारी कल्लूरी को भी 
भारत के राष्ट्रपति नें वीरता पुरस्कार दिया
आप कह सकते हैं कि मैं क्यों अतीत का रोना रोने बैठ गया हूँ 
बेशक हम अपना वर्तमान बेहतर बना सकते हैं 
लेकिन उसकी शुरुआत तो कीजिये और कृपया 
पिछली गल्तियां तो स्वीकार कर लीजिये 
सही रास्ते पर चलने के लिए सहमत हो जाइए
भारत में भी शांति, भाईचारा और प्रेम का वातावरण बन सकता है ।वरना हमारी नफरत और लालच हमें भयानक हालात में पहुंचा ही देगी, जैसा की देश में अनुसूचित जाति व आदिवासी के बच्चों, युवक-युवतियों, व पुरुषों की हत्याएं, शोषण बलात्कार, अपहरण मनुवादियों द्वारा तब भी होते थे और आज भी हो रहे हैं।
उसके लिए ज़िम्मेदार कोई और नहीं हम खुद ही हैं और होंगे । क्योंकि मूलनिवासियों से मनुवादियों ने छल-कपट से युद्ध, विषकन्या, वैश्या, बन्दरसेना के सहारे इस देश में पैर जमाए, फिर मुस्लिम शासकों ने, बाद में अंग्रेजों ने यहाँ जडें जमाई। मगर देश की कुल आबादी के मात्र लगभग ७.५% मनुवादी बनिये व ब्राह्मण आज पुन; शासन, प्रशासन, मीडिया, कोर्ट-कचहरी, व्यवसाय व सेना , फिर से मनुवादियों के अधीन है । क्योंकि पीढी दर पीढी अधिकांश आदिवासी, शुद्र व ओबीसीगण सनातन-परम्परा का पालन करते हुए, सनातन-धर्म की मानसिकता का कफन ओढकर, उनकी बन्दरसेना से वोटबैंक बने हुए हैं।
विडम्बना यह है भी है कि आज शहरी आदिवासी, अनुसूचित जाति व ओबीसी का हर कोई आरक्षण का लाभ लेने के लिये प्रयासरत है और अनेकों जातियाँ जनजाति का लाभ लेने के लिये आन्दोलन कर रह रहें हैं। मगर जब आदिवासी व अनुसूचित जातियों की हत्या, बलात्कार, शोषण होता है तो, हम उनकी जातियाँ तलाश करते हैं ।
यह हमारी विचित्र मानसिकता है कि . अधिकांश आरक्षित जातियों के लोगों को संविधान के अनुसार आरक्षण चाहिए मगर संविधान के निर्माता बाबासाहेबजी भीमराव अम्बेडकर के नाम पर एकजुट व अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाये । सभी बेहतर शिक्षण, विभिन्न व्यवसायिक प्रशिक्षण, विभिन्न व्यवसाय, शासन व प्रशासन में सहभागीदार बनने की बजाय, हम ब्राह्मण , मनुवादियों के देवी -देवताओं, त्यौहारों व मन्दिरों के पूजन व घंटे बजाकर मनुवादियों के ही वोटबैंक/अंगरक्षक /बन्दरसेना बने हुए हैं और ब्राह्मण व ब्राह्मण की औलाद बनने की होङ में शामिल हैं
मगर आदिवासी जनजाति का लाभ लेकर, मनुवादियों द्वारा आदिवासियों के प्रति होने वाले अत्याचार, बलात्कार, हत्या, जर,जोरु-जमीन, मन्दिरों पर कब्जे, व शोषण की अनदेखी कर रहे हैं। 
( संदर्भ स्रोत – वोल्गा से गंगा – लेखक राहुल संकृत्यायन, वयं रक्षामः – लेखक आचार्य चतुरसेन, सामाजिक विज्ञान की छठवीं ,सातवीं और आठवीं की इतिहास की एनसीआरटी की पाठ्य पुस्तक )
जय भीम दोस्तों




2 comments:

  1. Very good article. Its very logical & thought-provoking.

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  2. आर्यो की भाषा कौनसी थी और आर्यो के आने के समय शूद्र कौनसी भाषा बोलते थे ।।

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