Saturday, November 26, 2016

अन्य समाजों की तुलना में हमारा समान कहाँ

अन्य समाजों की तुलना में हमारा समान कहाँ                                   हमारा एक प्रश्न हे समाज के प्रखर बुद्धिजीवियों से
व्यक्तिगत हे अन्यथा न लें
मनमें जिज्ञासा पैदा हुई इसलिए आप से बात करने की इच्छा हुई

हमने भी लगभग 47 प्रतिसत समाज सर्वेक्षण किया
प्रायः देखने बोलने समझने और रहन सहन व् कार्य शैली
शिक्षा तथा व्यवहार से कुछ हाँशिल हुआ वह आपसे मखावित होना चाहता हूँ

हमारा समाज सबसे ज्यादा ज्ञान बघारता है
सबसे ज्यादा यज्ञ भंडारे हवन पूजन भगवान और देवताओं को पूजता है
सबसे बड़ी बड़ी तेरवीं करता है
सबसे ज्यादा अंधविश्वासी , रूढ़िवादी ,और पाखंडवादी भी है
अपने आपको सबसे ज्यादा संख्या में भी मानता है
आजकल टुविटर वाट्सअप फेसबुक पर भी सबसे ज्यादा नजर भी आरहा है
भारतीय राजनीति में बड़ चढ़के हिस्सा भी लेता है उसके बाद भी कहीँ कोई बजूद नहीँ
सर्विस उद्योग धनदों में भी सबसे कम है
इसके आलावा भी और कई समस्याओं से ग्रषित भी है
अब में ये जानना चाहता हूँ   , जाट यादव ,कुर्मी ,किरार ,
  गुर्जर  कुशवाहा ये डवलप क्यों हो गए
मेरा मतलब हे कहीँ न कहीँ इनमे एक रूपता है
फिर जो आप बताएं
और हमारे समाज में इतने ग्रुप हें कि पूरे विश्व में नहीँ होंगे
में समझता हूँ ब्राह्मण ,और दलितों में सबसे ज्यादा उपनाम होने के वावजूद भी भारत में टॉप क्लास पर है
मुझे लगता हे कि ज्यादा बड़ी बातें न करते हुए
छोटी छोटी बातों पर ज्यादा ध्यान दिया जाये
और आपस में खुद को सर्वश्रेष्ठ  न समझते हुए
फालतू की बहस में समय नष्ट न किया जाये
अभी तक ओ बी सी की यादव ,कुर्मी ,गुर्जर ,किरार , कुशवाहा ,से क्यों पिछड़ गए
इस पर भी गौर किया जाये
उनका साथ तमाम जातियां देती हें
आपके साथ एक भी जाती तैयार नही होती
कही न कही बहुत बड़ी कमी हे आप हम सभी में विचार करना ही होगा
हम आरक्षण का विरोध बिलकुल भी नहीँ करते
केवल आपसी तालमेल ठीक न होने के कारण बुरी तरह से भ्रमित और गुमराह हें

अभी तो में इन चीजों पर ही आपसे जानकारी चाहता हूँ

आगे भी आपसे समय समय पर संपर्क करता रहूँगा

  आपका
  अपना
कुं, बी एस बघेल

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